बुधवार, 5 अप्रैल 2023

भक्त के वश भगवान्

 भक्त के वश भगवान् 


मेरा एक अनुभव " मुट्ठी में भगवान् " और दूसरा " भक्तों के बस में भगवान्' | जिसे मैं लिखने पर मजबूर हूँ | सोमवार दिनांक ०३-०४-२०२३ , समय सुबह ५:३० बजे | हम नहा धोकर कमरे से बाहर निकले ताकि सुबह-सुबह श्री राधा-वल्लभ जी की आरती के दर्शन हो जाएंगे | हमने बाहर निकलकर इस्कॉन मंदिर के पास एक ई-रिक्शा किया , जिसमें पहले से ही एक अधेड़ उम्र की औरत बैठी थी और बांके बिहारी जी के दर्शनार्थ निकली थी | वह मुम्बई से थी | बातचीत में उसने बताया  कि वह तीन  दिन से वृन्दावन में है और अपने बुजुर्ग माता-पिता को यात्रा करवाने आई है | कहते-कहते उसकी आँखें छलक आईं कि इतनी भीड़ के चलते वह बिहारी जी के दर्शन नहीं कर पाई और आज सुबह- सुबह इसलिए जा रही हूँ क्योंकि आज हमारी वापसी है और मैं देहरी पर प्रणाम करने अपनी हाजिरी लगाकर चली जाऊंगी, इतनी भीड़ में माता-पिता को नहीं ला सकती |  भीड़ वास्तव में बहुत  ज्यादा थी | इतने में बांके बिहारी जी मंदिर वाली गली में ई-रिक्शा वाले ने हमें यह कह कर उतार दिया कि इससे आगे वह नहीं जा पायेगा | सुबह का समय था और सोमवार को भीड़ भी थोड़ी कम हो चुकी थी | हम जैसे ही उतरे , वह बिहारी जी मंदिर वाली गली में मुड़ने लगे और न जाने क्यों मैंने कह दिया कि , इस समय तो मंदिर खुला नहीं है , आपको दर्शन न हो पाएंगे , आप हमारे साथ राधा-वल्लभ जी के दर्शन कीजिये और हमारे साथ वापिस आकर बिहारी जी के दर्शन कर लेना , क्योंकि हमने भी वहीं आना था | वह एक बार झिझकी और फिर मुझे देखकर बोली , 'क्या आप मेरे साथ रहेंगी ?' मैंने भी हाँ बोल दिया और इससे मुझे कोई फर्क भी नहीं पड़ता था | वह हमारे साथ हो ली | हमने राधा-वल्लभ जी की आरती के दर्शन किए और फिर सेवा-कुञ्ज में | बाद में जब बिहारी जी मंदिर पहुंचे तो हमें काफी पीछे लाइन में लगना पड़ा और देखते ही देखते हमारे पीछे कुछ ही मिनटों में लम्बी लाइनें लग गईं | अब हम बीच में थे | वह औरत लगातार मेरा हाथ पकडे थी , मैं माँ का और मेरी माँ मेरी बहन का ताकि भीड़ में हम कहीं इधर-उधर न हो जाएँ | तय था कि एक दूसरे का हाथ नहीं छोड़ेंगे | आखिर हम मंदिर के अंदर पहुँच ही गए , बिहारी जी के दर्शन किए | मुश्किल तो हुई लेकिन मन गदगद हो उठा | इतनी भीड़ में हमारे लिए मंदिर के अंदर प्रवेश करना अपने आप में एक चमत्कार था | जैसे ही दर्शन करके बाहर निकले , उस औरत की आँखे नम हो उठीं और न जाने कितनी बार उसने हमें धन्यवाद बोला और साथ ही यह भी कहा कि मैं पहली बार यहां आई हूँ , आपके साथ जो दर्शन किए , वह न तो मुझे पता था और न ही मेरे लिए संभव था | हमें सुनके असहज लगा क्योंकि उसकी सहायता हम नहीं स्वयं बिहारी जी कर रहे थे , हम तो बस एक माध्यम थे | फिर भी, हम भी प्रसन्न थे और सोच रहे थे कि -श्रद्धा है तो भगवान् किसी भी रूप में कोई न कोई सहारा बना ही देते हैं | वह घर से निकल पडी थी भगवान् के भरोसे -बिना किसी उम्मीद के और जा रही थी भारी मन से | दर्शनोपरांत उसका मन प्रसन्न था और मन का बोझ अश्रुधारा बनकर बह चुका था | इस बार मैंने उसे अश्रु बहाने से नहीं रोका क्योंकि वो प्रेम के अश्रु थे , जिससे  मन निर्मल होता है और ऐसी पवित्र भाव-धारा को बहने से मैं रोकना नहीं चाहती थी |

इस सब के बाद वह चली गयी और बाद में याद आया कि न उसने हमसे हमारा नाम पुछा और न ही हमने | मैं उसका नाम तक नहीं जानती किन्तु इतना अवश्य अनुभव किया कि भगवान भक्तों के वश में हैं बस जरूरत है तो सच्ची श्रद्धा की |

मंगलवार, 4 अप्रैल 2023

मुट्ठी में भगवान् - स्व-अनुभव

 

सौभाग्य से मुझे इस सप्ताह हमारे प्रिय कान्हा की नगरी वृन्दावन जाने का सुअवसर मिला। वह पावन धरती ही ऐसी है कि आप स्व आकर्षित हो ही जाते हैं। जो एक बार जाता है बस वहीं का होकर रह जाता है। क्यों ? ये तो वही मुरलीवाला ही जाने। वहां पर लोगों की भीड़ और श्रद्धा देखकर ऐसा लगा कि पूरा भारत बस यहीं बसता है।हजारों नहीं , लाखों लोगों की भीड़ वहां समा कैसे जाती है ? पता नहीं ! भक्ति भाव , समर्पण , विश्वास, त्याग, श्रद्धा का अनूठा संगम दिखता है इस नगरी में। मेरी माँ, जिसकी सदैव इच्छा होती है - वृन्दावन जाने की। कभी कहीं और जाने की बात ही नहीं करती और कभी हम बात करें भी तो उनका मन ही नहीं मानता। अभी हमारी छुट्टी चल रही है , माँ की इच्छा थी और हमारे कान्हा की कृपा तो हमने भी अपना बैग पैक कर लिया। भीड़ तो इतनी थी कि बस पूछिए ही मत और जो भाव था हर मन में , उसके लिए तो कोई शब्द हैं ही नहीं। हम भी भीड़-भाड़ को चीरते हुए आगे निकले। खैर , सोमवार ०३-०४-२०२३ को हमने वृन्दावन में बहुत सारे मंदिरों के दर्शन किये और आखिर में हम गोपेश्वर मंदिर पहुंचे।मंदिर में बस पुजारी जी थे और हम जैसे ही पहुंचे , मंदिर के द्वार बंद। मुझे और मेरी बहन को एक झलक दिखाई दी और मेरी माँ को वो भी नहीं। हमारे पहुँचने से पहले मंदिर बंद हो गया होता तो शायद हमें इतना बुरा नहीं लगता yaa फिर मेरी माँ ne भी एक झलक दर्शन कर लिए hote तो भी संतुष्ट हो जाते। मुझे सच में बहुत बुरा लगा। l
लेकिन भगवान् की इच्छा मानकर हमने देहरी पर ही प्रणाम किया | इतने में पुजारी जी ने आकर कहा कि- इस समय भगवान् के विश्राम का समय है , इसलिए मंदिर के बाहर लगी घंटी नहीं बजाना, हम सामान्य इंसान हैं और इस मामले में सभ्य और अनुशासित भी और हमने हाथ जोड़कर इसको स्वीकार भी कर लिया | जैसे ही हम बाहर जाने को मुड़े , हमारे पीछे पुजारी जी भी मंदिर को ताला लगाकर बाहर जा रहे थे | हम आगे और पुजारी जी हमारे पीछे | इतने में एक बन्दर आया और पुजारी जी का चश्मा लेकर नौ -दो ग्यारह | पता तब चला जब पुजारी जी ने उस नासमझ जीव को अपनी भाषा में बुरा-भला बोल दिया | बन्दर की एक खासियत है कि आपकी चीज तभी लौटाएंगे , जब उनको कुछ खाने के लिए दिया जाए | पुजारी जी को अपना चश्मा चाहिए था और बन्दर को खाना | बिना खाना लिए बन्दर न मानने वाला था , ये बात पुजारी जी अच्छी तरह जानते थे | उन्होंने बन्दर की पेट पूजा के मंदिर का द्वार खोल अंदर से पूजा में चढ़ाया गया फल लेने का निश्चय किया और बिना सोचे चाबी निकाली और मंदिर का दरवाजा खोल दिया | हमें तो जैसे मुंह माँगा वरदान मिल गया हो | जैसे ही पुजारी जी ने दरवाज़ा खोला , हमने अच्छे से दर्शन किये और मन ही मन बन्दर को धन्यवाद भी दिया | ये भोलेनाथ की कृपा थी कि बहाने से ही सही लेकिन मंदिर खुला और हम बिना दर्शन के नहीं लौटे |हम सच में प्रसन्न थे और पुजारी जी का चेहरा देखकर हँसने पर मजबूर भी | पुजारी जी बिना हमारी तरफ देखे अपना चश्मा पाने की कोशिश कर रहे थे , हम दर्शन कर रहे थे और जब तक पुजारी जी फल लेकर बदंर जी से समझौता करते , बन्दर महाश्य चश्मे का पोस्ट-मार्टम कर चुके थे , हाँ उसके बदले उसको अपना मेहनताना अवश्य मिल गया था | उस समय हमारी हंसी का ठिकाना न था | बन्दर महाश्य ने अपना पेट भरा , हमने दर्शन किये और पुजारी जी अपने टूटे हुए चश्मे को टुकुर-टुकुर देख रहे थे | उस दिन हम इतना खुलकर हँसे कि हमारे पेट में बल पड़ने लगे | लेकिन इसी बीच ये भी सोचने पर मजबूर थे कि एक मिनट पहले जो पुजारी जी भगवान् के विश्राम-समय का वास्ता देकर हमें मंदिर के बाहर लगी घंटी को न बजाने की बात कह रहे थे , जिसे हमने श्रद्धा-पूर्वक मान भी लिया था , उसी ने अपने तुच्छ से चश्मे की खातिर भगवान् के विश्राम में विघ्न डाल दिया | ऐसा लगा मानो भगवान् इनकी मुट्ठी में हैं |
"करलो दुनिया मुट्ठी में' तो संभव है लेकिन किसी की 'मुट्ठी में भगवान्' ये पहली बार महसूस हुआ।