60 रुपये की चोरी - 1

बात लगभग अढाई साल पुरानी है , हम दिल्ली में थे हमारे साथ वाले फलैट में एक नव-विवाहित पति-पत्नी रहते थे, नये ही आए थे और अभी केवल चार-पाँच माँह पूरव ही शादी हुई थी
हाथों में चमचमाता सफ़ेद- लाल रंग का चूडा , हरदम मेंहदी से रंगे हाथ , पैरों में पायल की छ्न-छन, कलियों सी नाजुक , फ़ूलों सी छटा बिखेरती , सुन्दर सी साडी में सजी सुनैना की शर्माती हुई कोमल सी मासूम आंखें अनायास ही किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर लेतीं । ईश्वर नें उसे रूप ही इतना सुन्दर दिया था कि कोई भी देखने वाला देखता ही रह जाता , और वह नव-विवाहित दुलहन आंखे झुका शर्म से जब हल्की सी मुस्कान चेहरे पर बिखेरती तो लगता कोई ताजा-ताजा कली चटक के फ़ूल अपना सौन्दर्य बिखेरने को बेताब है ।
उसके साथ एक अजीब सा रिश्ता बन गया था, वो मुझे दीदी कहती और मैं उसे सुनैना , क्योंकि उसकी आँखें बहुत खूबसूरत थी पति
राजीव किसी कंपनी में कंप्यूटर इंजीनियर था और सुनैना भी अध्यापिका थी बहुत खुश रहते दोनों ही हम दोनों ड्यूटी से आने के बाद
थोड़ा मन बहलाने के लिए बाहर सीढियों पर ही बैठ जाती और कितनी ही देर तक बातें करती सुनैना हरदम खुश रहती,
आँखों में अजीब सी चमक, ढेरों सपने और पति के लिए प्यार उसका चेहरा उसके मन के हर राज को खोल देता , और उसकी इतनी मासुमियत देखकर मै कभी-कभी मन ही मन दुआ करती कि कहीं किसी की नज़र न लगे ।उसकी खुशी उससे संभाले न संभलती थी और मै उसके हर राज की भागीदर बनकर एक दोसत और बडी बहन की भूमिका निभाती । न जाने ऐसा उसमें क्या था । क्यों
मैं उसे या फ़िर वो मुझे अपना समझती थी ।फ़िर भी हम जितना वक्त इक्कठी रहती मै स्वयं को छुपाने की कोशिश करती और वो अपनी हर बात जब तक मुझे बता न देती , तब तक उसकी बातें खत्म ही न होतीं ।
कभी-कभी सुनैना मुझे स्वार्थी सी भी लगती , शायद इसलिए कि उसने कभी मेरे अंदर झांकने का प्रयास ही नहीं किया लेकिन अगले ही पल मैं स्वयं को कोसती भी कि शायद मैं ही अपने आप को छुपाने में इतनी सिद्धहस्त हूं कि कभी वो मेरी मानसिक स्थिती समझ ही नहीं पाई । उसी क्षण मुझे उसका भोलापन याद आ जाता और अपने वक्त के थपेडे ।वो थपेडे जिनकी पीडा का अहसास अपने सिवाय अपनों को कभी होने ही नहीं देना चाहती । फ़िर सुनैना भी तो मेरी अपनी ही हो चुकी थी ।

एक दिन बहुत खुश थी मुझसे बोली दीदी "राजीव के मम्मी-पापा (उसके सास-ससुर) पहली बार हमारे पास आ रहे हैं वो दिल्ली में
ही किसी की शादी में शामिल होने आ रहे थे सुनैना ने खूब तैयारी की , शायद एक आदर्श बहु बनने के लिए खूब दिल से सेवा की अपने सास-ससुर की राजीव भी अपनी पत्नी के ऐसे व्यवहार से बहुत खुश था जब उसके सास-ससुर शादी में जाने लगे तो सुनैना को भी साथ चलने
को कहा दुल्हन की सी सजी वह जाते-जाते मेरे पास भी आई उसे आदत जो थी मुझे सब कुछ बताने की, पर उस दिन तो वह मुझे अपने आप को दिखाने आई थी कितनी प्यारी लग रही थी वो , बहुत मासूम सी गुड़िया के जैसी

क्रमश:
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