ज्योतिर्लोक
ज्योतिर्लोक ज्योति बेटा, बाहर कचरे वाला आया है , ज़रा कचरादान तो बाहर रखदो। माँ, मेरे एग्जाम हैं और पढ़ रही हूँ , आप ही रख दो ना। हर समय पढ़ाई , पढ़ाई। कभी घर के काम में भी हाथ बंटा दिया कर। मैं अकेली क्या-क्या सम्भालूं। अभी खेतों में जाकर बुआई में भी हाथ बंटाना है। कहते-कहते माँ ने एक युवक के हाथ में कचरादान थमा दिया। माँ जी , अगर पानी मिल जाता तो रुको, अभी लाई युवक ने पानी पिया और एक आकर्षक सी मुस्कराहट के साथ आगे निकल लिया। न जाने क्यों माँ को वह युवक दूसरों से अलग दिखा। थोड़े दिन में माँ के मन में युवक के प्रति ममता जागने लगी। अब पानी के साथ-साथ चाय भी पूछी जाने लगी। युवक घर में झांकने लगा। और एक दिन ज्योति , ऊपर से सूखे कपडे उतार लाना नहीं तो बरसात में भीग जाएंगे। जी माँ झमझम बारिश और सारी फसलें तबाह। किसान की सारी की सारी मेहनत गयी मिट्टी में। परिवार में जैसे मातम का माहौल छा गया हो। युवक ने फिर से दरवाजे पर दस्तक दी। क्या हुआ माँ जी , आप कुछ परेशान दिख रही हैं। हाँ बेटा ,सोचा था , फसल अच्छी होगी, इस साल बेटी की पढ़ाई भी पूरी हो जाएगी तो उसके हाथ पीले कर गंगा नहा लेंगे , लेकिन कुदरत