सोमवार, 19 अप्रैल 2010

चुभन - भाग ४

चुभन - भाग 1
चुभन - भाग 2
चुभन - भाग 3
मैं बस सुन रही थी , नलिनी बोलती जा रही थी , ऐसे जैसे वह कोई आप-बीती न कहकर कोई सुनी-सुनाई कहानी सुना रही हो । उसके चेहरे पर कोई भाव न थे , या फ़िर अपनी भावनाओं को उसनें हीनता के पर्दे से इस तरह ढक रखा था कि किसी की नज़र उस तक जा ही न पाए । क्या बिना किसी भाव के कोई अपनी बात कह सकता है , मैं सोचने पर विवश थी और नलिनी इसकी प्रवाह किए बिना बोलते जा रही थी ----
तीन दिन बाद राकेश मुझे अपनी गाडी मे घर से लेने आया । मैनें जाने से मना कर दिया तो राकेश नें भरोसा दिया कि यह राज हम दोनों के अलावा किसी और को कभी पता भी नहीं चलेगा । फ़िर कुछ दिनों में हम दोनों शादी कर लेंगे ।
लेकिन मेरा तो कोई भी नहीं और तुम्हारे घर वाले क्या हमारी शादी के लिए राजी होंगे ।
मैं हूं न फ़िर घर वालों को तो मैं मना ही लूंगा । पिताजी की अकेली संतान हूं , भला वो मेरी बात नहीं मानेंगे
तो किसकी मानेंगे ।
मैनें फ़िर से राकेश पर भरोसा कर लिया । कुछ दिन बाद उस रात का परिणाम सामने था मेरे पास मेरे अपने ही पेट में । कितनी बेबस थी मैं कि अपने ही शरीर से उस निशान को नहीं मिटा पा रही थी , जो हर पल मेरी आत्मा को घायल करता ।
मैं राकेश को शादी के लिए मनाने लगी और राकेश हर बार बात को टाल देता । मैं उसकी टाल-मटोल और नहीं सुन सकती थी , सो मैनें अबार्शन करवाने का फ़ैसला कर लिया तो राकेश नें मंदिर में ले जाकर मेरे गले में मंगलसूत्र और मांग में चुटकी सिन्दूर डाल सुहागिन होने का ठप्पा मेरे माथे पर लगा दिया ।
राकेश नें मुझसे मंदिर में भगवान को साक्षी मानकर शादी तो कर ली लेकिन यह बात तब तक छुपाकर रखने को कहा जब तक वह अपने पिताजी को हमारी शादी के लिए मना नहीं लेता । अब मैं भी बेफ़िक्र हो गई थी । भले ही किसी नें न देखा लेकिन मंदिर में बैठने वाला भगवान तो सबकुछ देखता है , यही हमें सिखाया गया था बचपन में और उसी भगवान भरोसे मैं राकेश को पति परमेश्वर मान चुकी थी और राकेश को अपनी जुबान बंद रखने का वादा भी किया था ।
मैनें अपना वादा निभाया भी , अपनी जुबान बंद रखी लेकिन उस पेट को कैसे छुपाती जो हर नए दिन के साथ नया रूप ले रहा था , मुझे देखते ही आफ़िस में कानाफ़ूसी शुरु हो जाती । धीरे-धीरे बात घर से निकल आफ़िस गली-मुहल्ले क्या पूरे शहर में फ़ैल चुकी थी और मैं इन सब बातों से अनजान ।
मुझे यह समझ नहीं आया कि राकेश का मैनें अपनी जुबान से कभी किसी के सामने जिक्र तक न किया था , फ़िर उसके साथ मेरे संबंधों की चर्चा फ़ैली कैसे ? क्या राकेश नें ही सबके सामने .....?
नहीं नहीं वो ऐसा नहीं कर सकता , स्वयं को ही तस्सली देने पर मजबूर थी । लेकिन दिन भर इतनी सारी शक्की निगाहों का सामना करते-करते मेरा विश्वास भी घायल होने लगा था और यह सब तब हुआ जब मैं बुरी तरह से फ़ंस चुकी थी , तीर मेरे हाथ से निकल चुका था । राकेश सांप बन कर मुझे डस चुका था और मैं खाली लकीर पीट्ने को मजबूर थी , इसके अलावा कोई चारा भी न था । अपनी ही बेवकूफ़ी पर आंसू बहा स्वयं पोछने पर मजबूर थी ।
पर तुम तो इतनी कमजोर न थी । जिसे देखकर कालेज में लडके आंख उठाकर देखने का साहस न करते थे , वह इतनी लाचार और बेबस कैसे हो सकती है ? तुम क्या हो ? यह अभी तक मै नहीं समझ पाई हूं ? तुम वो थी जो कालेज में बोल्ड गर्ल के नाम से जानी जाती थी या फ़िर ... ये हो कमजोर , लाचार , बेबस और अपनी मजबूरी का रोना रोने वाली ।
पता नहीं .....। मुझे उस से यह बनाने में मैं स्वयं जिम्मेदार हूं या फ़िर हालात ।
हालात का रोना क्यों रोती हो ? मुझेसे रहा न गया .... वह तो अपने बनाए होते हैं ? क्या तुम अंदर से इतनी कमजोर थी कि एक ही झटके से टूट गई , इस तरह कि तुम्हारा अपना कोई अस्तित्त्व ही नहीं रहा ? क्या हालात इंसान को इतना मजबूर कर सकते हैं कि बिना किसी सहारे अपने दम पर जी ही न सको ? क्या एक पढी-लिखी कमाऊ लडकी आत्म-निर्भर नहीं हो सकती ? क्या तुम्हारे पिताजी नें तुम्हें इसलिए पढाया कि तुम अपनी ही सोच में गिर जाओ , नहीं इसलिए पढाया कि तुम दुनिया का और किसी भी हालात का सामना समझदारी से कर सको । क्या तुम नहीं जानती थी कि दुनिया कितनी स्वार्थी है ? जब तुम्हारे अपने भाई पैसों की खातिर तुम्हारा साथ छोड गए तो फ़िर तुम उस इंसान पर कैसे भरोसा कर सकती हो , जिसे तुमने कभी जाना ही नहीं ? मैं बोलती जा रही थी । न जाने अब मुझे नलिनी पर दया नहीं गुस्सा क्यों आ रहा था ? और मैं यह भी भूल चुकी थी कि वह इस वक्त मन पर मनों बोझ लिए मेरे घर पर अपनी विश्वस्नीय सहेली के पास है । मैं भूल गई थी कि वर्षों से उसनें कितना कुछ अपने सीने में दफ़न कर रखा है , जो ज्वालामुखी बनकर फ़ूट जाना चाहता है और उसकी कुंठाग्रस्त भावनाएं लावा बनकर बह जाने के लिए हलचल मचा रही हैं । मेरे कुछेक शब्दों नें उस पर हथौडे सा प्रहार किया और वह फ़ूट-फ़ूट कर रोने लगी ।
क्रमश:

3 टिप्‍पणियां:

  1. seema G Namaskar, (POLKHOL) Kahani achhee hai, lekin aant mai thoda sa......? kiyoki kahani aaj ke sandarbh mai halki jaan padti hai. educated ladki aur itni nasamjh. galle se mamla ootra nahi. kahni aur achhi ho sakti hai idea acchha hai. Ladki strong ho sakti thi.

    जवाब देंहटाएं
  2. दिलचस्प है .कई मोड़ो पर दुरस्त है....

    जवाब देंहटाएं
  3. कहानी अच्छी लगी पर जो पोल खोल जी ने कहा उसस् मै भी सहमत हूँ ।

    जवाब देंहटाएं

आपका हर शब्द हमारे लिए प्रेरणा स्रोत है और आपके हर बहुमूल्य विचार का स्वागत है |कृपया अपनी बेबाक टिप्पणी जारी रखें |आपके पधारने के ले धन्यवाद...सीमा सचदेव