गुरुवार, 30 अप्रैल 2009

बिखरी जिन्दगी

दीवार से सटी बैठी सुजाता हाथ मे बन्धी पट्टी को एक़ टक घूरती हुई जैसे सुन्न सी ही हो गई पट्टी बान्धते -बान्धते उसने पाँच साल के बेटे रोहन को पास बुलाया ,पर रोहन ने साफ इन्कार कर दिया
रोहन के मुँह से इन्कार सुजाता की जिन्दगी की सबसे बडी हार थीआँखो से अविरल बहती अश्रुधारा के साथ अतीत की यादो मे खोई सुजाता की जिन्दगी कुछ ही पलो मे क्या से क्या हो गई ?
कितनी खुश थी वह अनुज का साथ पाकर दोनो ही बचपन के दोसत , पडोसी और पारिवारिक सम्बन्ध भी बहुत अच्छे
सुजाता के पिता जी के देहान्त के बाद वही लोग थे जिन्होने सुजाता और उसकी माँ को पारिवारिक सदस्य की भान्ति
समझा था वरना दुनिया की भीड मे अकेली औरत छोटी सी बच्ची के साथ पूरी जिन्दगी का सफर ...........?

अनुज और सुजाता इक्कठे खेलते कब बडे हो गए और यह बचपन की दोसती ने कब प्यार का रूप ले लिया ,
पता ही न चला कॉलेज की पढाई खत्म करने के बाद ही अनुज और सुजाता दोनो ही अपने - अपने काम मे व्यस्त हो गए सुजाताअध्यापिका और अनुज इन्जीनियर ,बहुत प्यारी जोडी थी दोनो की और किस्मत भी मेहरबान सबसे बडी बात यह कि किसी को भी उनके प्यार पर कोई एतराज ही न था कितनी आसानी से मिल गई थी दोनो के प्यार को मन्जिल
सुजाता तो इतनी खुश कि कदम ही जमी पर न पडते थे अनुज भी सुजाता का साथ पाकर बेहद प्रसन्न था उनकी खुशियो को चार चाँद लग गए जब एक ही साल बाद एक प्यारा सा बेटा जिन्दगी मे आ गया भला इससे ज्यादा और क्या चाहिए एक सुखी जीवन और खुशहाल परिवार के लिए देखते ही देखते पाँच साल बीत गए ,जिन्दगी तो जैसे भाग ही रही थी, लेकिन अनुज और सुजाता का प्यार तो समय के साथ और भी गहराता गया
क्यो न होता? , जीवन मे सबकुछ तो पाया था उन्होने भले ही सुजाता को
अपने पिता का प्यार न मिला लेकिन ससुराल मे इतना प्यार मिला कि वो पिता को भी भूल गई
सुख के दिनो की उम्र शायद बहुत बहुत छोटी होती है एक दिन अनुज के पिता हृदय गति रुकने से दुनिया से चल बसे और माँ यह सदमा सह न पाई अपने पति की मृत्यु के बाद से ही अस्पताल मे थी सुजाता अपनी सास की खूब सेवा करती ऐसे मे रोहन अपनी नानी(सुजाता की माँ) के पास ही रहता अनुज को अपने काम के सिलसिले मे कुछ दिन के लिए शहर से बाहर जाना पडा तो सुजाता पर ही सारी जिम्मेदारी आ पडी लेकिन कुछ ही दिन की बात थी
सुजाता अपनी ड्यूटी के बाद सीधे अस्पताल मे जाती और फिर शाम के समय घर आ जाती एक दिन अस्पताल मे ही उसे काफी रात हो गई थी मना भी किया था सासु माँ ने इतनी रात को अकेले न जाने के लिए,लेकिन बच्चे के लिए तो घर पहुँचना ही था
रात को अकेले जाते हुए उसे थोडा डर तो महसूस हुआ लेकिन हिम्मत करके आटो रिक्शा लेकर चल ही पडी
वो अकेली क्या चली ,उससे तो जैसे तकदीर ही रूठ गई रास्ते मे सुनसान जगह,दूर्-दूर तक फैला सन्नाटा,अन्धेरी रात और अकेली औरत.....?
आटो रिक्शा चालक और तीन नकाबपोश ......फिर बारी -बारी से सबकी गड्ड्-मड्ड अपनी भूख मिटाई और बेहोश सुजाता को वही छोड रात के अन्धेरे मे ही गायब
कुछ पलो मे सबकुछ लुट गया था ,और किसी को खबर तक न थी सुजाता तो उन्हे पहचानती तक न थी जब होश आया तो अन्धेरा तो छन्टने लगा था और हल्की सी सूर्य की किरण भी धरती पर पड रही थी
पर आज की यह किरण तो सुजाता की जिन्दगी मे हमेशा के लिए अन्धेरा करने को आई थी सँभली तो सिवाय माँ के और कुछ न सूझा जैसे -तैसे घर पहुँची माँ तो सुन कर वही की वही ढेर और फिर कभी न उठी सुजाता तो ऐसे समय मे कुछ भी समझने के काबिल न थी जब उसको किसी कन्धे की जरूरत थी ,जिस पर वह सिर रख कर रो सके, ऐसे समय मे वह भरी-पूरी दुनिया मे दिल पर चट्टान सा बोझ लिए बिल्कुल अकेली थी करती भी तो क्या ?बीमार सास से कुछ कहने की हिम्मत न जुटा पाई और कोई और ऐसा था ही नही जिससे कुछ कह पाती अपनी पीडा को अन्दर ही अन्दर दफन करने को मजबूर थी
कुछ दिन मे अनुज भी लौट आया लेकिन तब तक तो सब कुछ उथल पुथल हो चुका था
सुजाता के मुँह मे तो जैसे जुबान ही न थी ,हर समय गुम-सुम
अनुज को लगा ,शायद माँ की मृत्यु से आहत है ,उसे प्यार से समझाने की कोशिश करता पर अनुज की सब कोशिश व्यर्थ जाती
कोई दो माह बाद सुजाता अस्पताल मे थी ,एक अनचाहे गर्भ की पीडा झेलते हुए दो महीने का गर्भ तो गिर गया और थोडा सा सुजाता को सन्तोष भी मिला था ,न जाने किसका पाप उसके अन्दर पल रहा था
चलो अब जिन्दगी भर उस पाप का मुँह तो न देखना पडेगा लेकिन जब भाग्य ही विपरीत हो तो कोई क्या करे?
गर्भ तो गिर गया परन्तु गिरते-गिरते भी अपनी निशानी छोड गया
ऐसी पीडा जो नासूर बन कर हर समय चुभती रहती
ज़ब डॉक्टर ने अनुज को समझाते हुए सावधानी बरतने को कहा था और बताया था कि
यह बीमारी छूने से या फिर जूठा खाने से नही फैलती ,बस आपको ध्यान रखना होगा कि उसका खून किसी के खून से न मिलने पाए और उसे कोई चोट आने पर नन्गे हाथो से उसका घाव न छुए वह भी सामान्य जिन्दगी जी सकती है
बस जरूरत है भावनात्मक सहारे और प्यार की

यह सब बाते रोहन भी सुन रहा था और उसके नन्हे मन पर सब बाते घर कर गई थी
अनुज़ डॉक्टर की बात तो सुन रहा था लेकिन आँखो मे तो जैसे खून ही उतर आया था ,
वही के वही वह स्वयम को खत्म देना चाहता था

उसके प्यार के साथ इतना बडा धोखा .......?
इतनी बेवफाई.......?
उसकी पत्नी .....चरित्रहीन.....?

अनुज तो कुछ सुनने समझने की शक्ति ही खो बैठा था बस उसे सुजाता एक बेवफा और चरित्रहीन ही नज़र आई

क्या कमी थी मेरे प्यार मे....?
उसे और क्या चाहिए था...?

जो मुझे छोड कर बाहर....छी ,
मैने कैसे सुजाता जैसी औरत पर भरोसा किया....?

सोचते -सोचते अनुज तो पागल ही हो गया

सुजाता ने बहुत प्रयास किया कि अनुज से बात करे और उसे सब कुछ बता दे ,पर अनुज की आँखो पर तो
नफरत की पट्टी बन्ध चुकी थी अपने जिस बेटे रोहन के बिना वह एक पल न रह पाता था वो भी अब उसे
किसी का पाप ही दिखने लगा था

और एक दिन अनुज ने अपना तबादला दूसरे शहर मे करा लिया बीमार माँ का इलाज़ कराने के बहाने माँ को साथ
लेकर सुजाता और बच्चे को अकेला छोड चला गया कहाँ गया ...?

सुजाता न जान पाई और इस हालत मे उसे ढूँढती भी तो कहाँ ...?

सुजाता के पास धन -दौलत की तो कमी न थी लेकिन जो प्यार और भावनात्मक सहारा उसे चाहिए था वही न था
शायद वह भी सामान्य जिन्दगी जी पाती ,अगर अनुज ने उसे थोडा समझा होता

फिर भी अपने बेटे की खातिर जिए जा रही थी पर एक दिन जब बागीचे मे बिखरे पत्ते समेटते हुए उसके हाथ मे काँटा
चुभ गया और खून बहने लगा तो अनजाने मे ही पट्टी बान्धते-बान्धते रोहन को पास बुलाया था

और नन्हा सा रोहन जिसके दिमाग मे डॉक्टर अन्कल की बाते घर कर चुकी थी ने माँ से कहा:-

"नही ! मै नही आऊँगा ,डॉक्टर अन्कल ने कहा था आपका खून अगर हमे लग गया तो हमे भी एडस् हो जाएगी

रोहन के मुँह से ऐसी बात सुन कर सुजाता तो टूट कर बिखर ही गई अगले ही दिन रोहन को हॉस्टल मे
भेजने का इन्तजाम कर सुजाता जब घर लौटी तो अन्धेरा हो चुका था छत पर जाकर खुले आसमान का सूनापन
अपनी सूनी आँखो से ताकते-ताकते कब सदा की नीद सो गई ,पता ही न चला

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Note:-एड्स छूने से ,हाथ मिलाने से या फिर जूठा खाने से नही फैलता
एड्स फैलता है असुरक्षित यौन सम्बन्ध से ,इस्तेमाल की हुई सुई का प्रयोग करने से
एड्स के मरीज भी सामन्य जिन्दगी जी सकते है ,उन्हे भावनात्मक सहारा चाहिए
एड्स के मरीज का घाव नन्गे हाथ से नही छुएँ
किसी का खून लेने से पहले उसकी जाँच होना अनिवार्य है


एडस:- जानकारी ही बचाव है

1 टिप्पणी:

  1. सीमाजी,
    आपने इस कहानी में एड्स की तो जानकारी दी ही है,,,,,
    मगर जो अनुज का किरदार दिखाया है ,,,,,
    वो वाकई में विश्वास के ऊपर धब्बा है,,
    लगता है के उसने कभी सुजाता से प्रेम किया ही नहीं था,,,,
    प्रेम और विश्वास में इन शक और शुबहा जैसी बातों के लिए कोई भी स्थान नहीं होता ,,,
    यदि हम वाकई प्रेम करते हैं तो विश्वास भी करते हैं,,,
    (अगर विश्वास ही नहीं करते तो समझिये के प्रेम भी नहीं करते,,,)
    मेरा तो यही मानना है,,,,,,

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